गोबर के फायदे..

गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस गाय/भैंस द्वारा घास, भूसा, खली आदि जो कुछ चौपायों खाया जाता है उसके पाचन में कितने ही रासायनिक परिवर्तन होते हैं तथा जो पदार्थ अपचित रह जाते हैं वे शरीर के अन्य अपद्रव्यों के साथ गोबर के रूप में बाहर निकल जाते हैं। यह साधारणत: नम, अर्द्ध ठोस होता है, पर पशु के भोजन के अनुसार इसमें परिवर्तन भी होते रहते हैं। केवल हरी घास या अधिक खली पर निर्भर रहनेवाले पशुओं का गोबर पतला होता है। इसका रंग कुछ पीला एवं गाढ़ा भूरा होता है। इसमें घास, भूसे, अन्न के दानों के टुकड़े आदि विद्यमान रहते हैं और सरलता से पहचाने जा सकते हैं। सूखने पर यह कड़े पिंड में बदल जाता है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है।
* गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी ये सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
* गौमूत्र और गोबर, फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है।
* कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की ऊर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है।
* प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है।
* गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल के मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है।
Note:
ऐसा ज्ञान मैंने बहुत जगह सुना पढ़ा है  खास कर अंधभक्तो के द्वारा  इसलिए यह पोस्ट सही है में दावा बिलकुल नहीं करता 

Parmod Ahuja

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Parmod Kumar Ahuja. Verified Media or Organization • 14 Sep, 2025

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