1565. ये वह साल था जब पिछले एक हज़ार साल के पांच सबसे अहम् बैटल्स में से एक
1565. ये वह साल था जब पिछले एक हज़ार साल के पांच सबसे अहम् बैटल्स में से एक, यानी तालिकोटा की जंग लड़ी गयी थे. विजयनगर साम्राज्य के खिलाफ अहमद नगर, बीजापुर, बीदर और गोलकुंडा के सुल्तानों ने अलायंस किया और इस मुत्तहिदा ताक़त ने महान

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- 1565. ये वह साल था जब पिछले एक हज़ार साल के पांच सबसे अहम् बैटल्स में से एक
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1565. ये वह साल था जब पिछले एक हज़ार साल के पांच सबसे अहम् बैटल्स में से एक, यानी तालिकोटा की जंग लड़ी गयी थे. विजयनगर साम्राज्य के खिलाफ अहमद नगर, बीजापुर, बीदर और गोलकुंडा के सुल्तानों ने अलायंस किया और इस मुत्तहिदा ताक़त ने महान, शक्तिशाली विजयनगर को हरा कर उस हुकूमत का खात्मा कर दिया, हिंदुस्तान की तारीख का रुख मोड़ दिया.
हुसैन निज़ाम शाह, अली आदिल शाह अव्वल, इब्राहीम कुली क़ुतुब शाह और अली बरीद शाह की मुत्तहिदा ताक़त ने वह करिश्मा कर दिखाया था. दकन की ये सल्तनतें बेहद ताक़तवर और मज़बूत थीं. आपस में शादियों से उन्होंने रिश्ते और पुख्ता किये थे. बहरहाल, बाद के दौर में यानी अकबर के दौर में अहमदनगर को तबाह करने में सारी एनर्जी लगा दी गयी. मुगलों के सामने अहमदनगर कुछ न था, मगर ज़िद और अना में, वह इस रियासत के पीछे पड़ गए. चाँद बीबी ने बड़ी शुजाअत और फरासत का मुज़ाहरा किया मगर बहरहाल कहाँ वह फ़ौज और कहाँ अहमदनगर.
बुंदेलखंड से उड़ीसा के आगे तक बहुत इलाक़े तक, शोरिशें कई जगह थीं मगर, निशाना यही रहा. इसके बाद, औरंगज़ेब आलमगीर ने बोहत दीगर इलाक़ों को छोड़, गोलकुंडा और बीजापुर में अपनी पूरी ताक़त झोंक दी. ज़िंदगी के आखरी दशक दकन में लगा दिए. हिंदुस्तान के सबसे ठोस क़िलों में से एक, गोलकुंडा, का मुहासरा किया और आखिरकार ये रियासत ख़त्म हुई. उधर आदिल शाही सलतनत को भी ख़त्म किया. जबकि मराठा हुकूमत ताक़तवर होती गयी.
मगर सारे रिसोर्सेज़ लगा कर और दकन में बैठने की वजह से मरकज़ यानी देहली कमज़ोर हो गया. जाट और सिख ही नहीं दुसरे कई ग्रुप हावी हो गए. औरंगज़ेब के इंतक़ाल के बाद पंद्रह साल भी मुग़ल हुकूमत क़ायदे से न चल पायी, बादशाह की हकीकत ये थी की वज़ीर तय करने लगे किसको बनाएं, किसको क़ैद करें.
हिस्ट्री में इंसान आम तौर पर एक साइड को पिक कर लेता है और फिर कुछ और वर्ज़न वह नहीं सुनना चाहता. बहरहाल, गोलकुंडा, बीजापुर और अहमदनगर के खात्मे के बाद अंग्रेज़ों के लिए क्या रुकावट थी. ये वह सुल्तनतें थीं, जिनके होते, मुमकिन ही नहीं था कि बैरूनी ताक़तें इस हद तक मुल्क में क़दम बढ़ाएं.
विजयनगर की रूइंस यानी बाक़िआत, तबाही के निशाँ देखने लोग जाते हैं.
असल बात ये है कि इत्तिहाद बड़ी चीज़ है. आज भी दक्षिणपंथी इतिहास में विजयनगर की हार एक सिविलाइज़ेशनल वून्ड यानी गहरे ज़ख्म की तरह पैवस्त है, और इसी अज़ीम इत्तेहाद जिसने 1565 की जंग जीती थी, उससे सबक़ लेते हुए दक्षिणपंथ अपने हर इख्तिलाफ को भुला कर ग्रेटर कौंमन आइडेंटिटी की तरफ गामज़न है.
NOTE: इत्तिहाद में बड़ी ताक़त है और जब मुखालिफ ताक़तवर ही नहीं शातिर भी हो, सब से सबक़ सीख कर आया हो और कोई उसूल न रखता हो तब तो आपको इत्तिहाद की अहमियत और इन्तषार न फैलने देने के बारे में बहुत फिक्रमंद होना चाहिए. अफ़सोस, सियासी शऊर की कमी तो इंतहा पर है ही, इत्तिहाद की अहमियत भी लोग नहीं समझते.
Source: Shams Ur Rehman Alavi
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